1

मुझे कोई बुला रहा है

मुझे कोई बुला रहा है
स्वप्न जगत में दूर कहीं मैं खोया-खोया सा था
अज्ञात वास से आकर, मुझे जगाकर , कोई सुला रहा है
मुझे कोई बुला रहा है............
वियोग नहीं संयोग नहीं , हास नहीं परिहास नहीं
अंतर्मन में फूट पड़ी हैं किसकी यादें
अश्रु छलकते नहीं हैं फिर भी मुझे कोई रुला रहा है
मुझे कोई बुला रहा है...............
यह स्वर हीन संदेसा मैंने कैसे पाया नहीं जानता
इस झूले पर निज प्रयत्न से झूल रहा हूँ नहीं मानता
जीवन-मृत्यु के झूले पर मुझे कोई झुला रहा है
मुझे कोई बुला रहा है.........................
**********************
गा ना सकूंगा आज मुझे क्षण भर रोने दो
आज व्यथित, स्वप्न बीच में टूट गया है
चलते चलते पथ का साथी छूट गया है
पा ना सकूंगा आज मुझे सब कुछ खोने दो
गा ना सकूंगा आज मुझे क्षण भर रोने दो

1 टिप्पणियाँ:

अर्चना तिवारी ने कहा…

सुंदर रचना

एक टिप्पणी भेजें

WELCOME