मैं खुद को रोक नहीं पाता हूँ
तेरी और खिंचा आता हूँ
कोई चुपके से आ मुझसे , कानों में कुछ कह जाता है
मेरा तुझसे जनम जनम का प्यार का ये पावन नाता है
एकाकी होकर भी, तुझको, बहुत निकट अपने पाता हूँ
मैं खुद को रोक नहीं पाता हूँ .................................
निकट तेरे आकर भी मेरे, मन की प्यास नहीं बुझती है
तुझसे मिलन नहीं होता जब पीर और ज्यादा उठती है
नहीं मिलूंगा कभी मैं तुझसे बार बार क़समें खाता हूँ
मैं खुद को रोक नहीं पाता हूँ ......................................
विरह पीर उठते ही दिल में, मेरा वियोगी मन रोता है
थका थका सा प्यार सुनहरे , सपनों की लाशें ढोता है
किसकी खातिर , कैसे इतना,दर्द, प्रिये, मैं सह जाता हूँ
मैं खुद को रोक नहीं पाता हूँ .................................
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कच्चे धागे से बंधे चले आयेंगे हुज़ूर कच्चे धागे से
प्यार के नशे में चले आयेंगे हुज़ूर भागे भागे से
ये प्यार का बंधन है , ना तोड़ सका कोई,
इस बहते दरिया को ना मोड़ सका कोई
एक बार प्यार करके ना छोड़ सका कोई
नींद उड़ जायेगी , तब आयेंगे हुज़ूर जागे जागे से.
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