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सब्र हमसे

सब्र हमसे करा लिया था तब
सब्र अब आपको करना पड़ेगा
ऐसी जल्दी भी क्या मुहोब्बत में
पास एक इम्तहान करना पड़ेगा

पहले कर लूँ यकीं कि है या नहीं
आपको प्यार इस दीवाने से
जैसे जलता रहा है वो अब तक
इश्क कि आग में जलना पड़ेगा

है मज़ा इश्क में तभी सुनिए
आग दोनों तरफ बराबर हो
जलके हो जाए ख़ाक परवाना
शम्मा को आग में गलना पड़ेगा

कैसे पूजा करूँगा मैं उसकी
जो अभी सिर्फ एक पत्थर है
होगी तकलीफ भी मगर उसको
मेरी मूरत में ही ढालना पड़ेगा

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पर्वतों से गीत ले, ले वादियों से रागिनी
निर्झर जब गाता चलता है
कल कल छल छल कि मधुर ध्वनि से
पत्थर ह्रदय पिघलता है
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मुझे पुकारो

छलका दे आँखों से आंसू
भावी,गीत सुना जब कोई
मुझको जानो वह बंजारा
खोज रहा जो तुम्हें स्वप्न में

हर जन्म में हम तुम मिलते रहे
इस जन्म में तुमसे मिल ना सका मैं
तुम्हें खोजता भटक रहा हूँ
मृग मरीचिका में स्वप्नों कि

कहाँ छिपी हो कौन देश में
कौन रूप में कौन वेश में
अब तो बदली से बाहर आओ
शशि मुख अपना दिखलाने को

मेरे प्राण बसे हैं तुममें
देह यहाँ पर तड़प रही है
ओ, अनदेखी, ओ,मन देखी
आज कहीं से मुझे पुकारो

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सबने मुस्काते हुए देखा मुझे
एकांत में रोता ना कोई देख पाया
दर्द का मेरे कहाँ, किसको पता
घाव कैसा है कहाँ किसने लगाया
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थका -थका हूँ सफ़र में कहीं आराम मिले

थका -थका हूँ सफ़र में कहीं आराम मिले
अभी पता है, ना जाने कहाँ मुकाम मिले

एक कोमा ज़रूरी है जब तक
लिखने वाले को एक कलाम मिले

यूँ तो मिलने को मिल चुके लाखों
ठगने वाले मगर तमाम मिले

जिनसे उम्मीद थी नहीं दिल को
वो ही हाथों में हाथ थाम मिले

हमने मांगी थी उनसे आब-ए-हयात
अपने हिस्से में सिर्फ जाम मिले

ये ही हसरत लिए सफ़र को चले
आज शायद सुबह से शाम मिले

गलत पता ना था उनका "स्वप्न" तलाश करी
ना वो वहां थे , ना उनके निशान-ओ-नाम मिले

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मैं इसी जगह पर तुम्हें खोजने आऊंगा
मैं इसी जगह पर गीत विरह के गाऊंगा
मैं इसी जगह पर रो लूँगा तन्हाई में
मैं इसी जगह पर तड़प तड़प मर जाऊँगा