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ह्रदय के भेद

ह्रदय के भेद


मैं  ह्रदय के भेद सारे खोल देना चाहता था
एकला था मैं तुम्हें भी साथ लेना चाहता था
तुम ना समझे मेरी भाषा
मेरे ह्रदय कि भावना को
तुम ना समझे
कुछ तो हैं मेरी विवशताएँ
हैं सीमायें मेरी कुछ
कैसे समझाउं
तुम्हें वह सब 
जग कि भाषा में
गर समझना चाहते हो तो,
ह्रदय कि मूक भाषा से समझ लो 
रौशनी के झुण्ड से,
छिटकी किरण से
पा सको तो मार्ग पा लो
फूल हो तुम ,
मुझको बस कांटा समझ 
अपना बना लो
मैं तुम्हारा हूँ
मगर, तुमने मुझे अपना न माना
मेरी बातों पर किये शक 
सिर्फ मुझको गैर जाना
मूल्य है जिसका नहीं कोई, 
तुम्हें मैं, दोस्त ऐसा प्यार देना चाहता था
मैं ह्रदय के भेद सारे खोल देना चाहता था.



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1

कल और आज


कल और आज


कल(आने वाला) का आज से क्या सम्बन्ध?
कल (आने वाला) कौन है ?
वह भी नहीं जानता,
वह मौन है
और कल(बीता हुआ)
एक पूर्ण ऐतिहासिक निबंध
"आज" बोल रहा है
कलियुग और सतयुग को
काल कि तराजू पर तोल रहा है
कलयुग ही श्रेष्ठ है
उसमें :आज "है
उसमें कल कि अनुभूति
और मौन कल(आने वाले) कि स्वरहीन 
किन्तु सांकेतिक आवाज़ है
कल एक स्वप्न था
जो टूट गया
किन्तु उसका चित्र
स्मृति पटल पर छूट गया
और कल एक "स्वप्न" है
जो प्रतिपल है.



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