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कृष्ण मॉधुर्य व्याख्या बुक 1 पार्ट 3 uma sarpal

yरचना-50

कान्हा तेरे चरणों में जो सुख पाया वो कहीं नहीं
इससे बढ़कर दुनिया का सुख नहीं नहीं नही  नहीं ! कान्हा …..
तू दूर भी है तू पास भी है तू भक्तों का विश्वास भी है
जहां जहां पर नज़र उठाई तुझको पाया वहीं वहीं ! कान्हा…..

( श्री योगेश वर्मा स्वप्न जी की पुस्तक कृष्ण माधुर्य-1 में से )

आज की रचना आह्वान है श्री धाम वृन्दावन जाने के लिए !  भाग्य उदय होते हैं भक्त के , जब उसके कदम वृन्दावन की ओर बढ़ते हैं ! ऐसी पावन पुनीत है वो धरा की रज , जिस पर रसिकों के सर्वेश और उनकी हृदया श्री जु लीलाएं करते हैं ! रचनाकार मेरे भैया उसी पवित्र धरा का गुणगान यूँ कर रहे हैं …...प्यारे रसिक जनों …..चलो , वृन्दावन चल उस प्यारे कन्हाई का नाम ले …... अपने जीवन को सार्थक करें …..जन्म जन्मान्तरों से जीव …..माया ठगनी के चंगुल में फंसा है …..अब उसका भाग्य उदय हुआ है …वो.श्री धाम आ रहा है …..मन की चंचलता को घटा …..माया से विरक्त हो …..मन को ठहराव आने दो …..पावन बृज की रज में लोट लोट ….इस पर बलिहार हो मस्तक पर लगाओ …..राधा नाम के सुमिरन से मन की चंचलता को मारते रहो …..यहां आ निःस्वार्थ …..निष्काम हो जाओ …..रासबिहारी कान्हा ….हररोज़ निधिवन ….सेवाकुंज  में रास रचाने …..और यमुना पुलिन पर  आ वँशी बजाते हैं …..यहां का तो पत्ता पत्ता भी राधे श्याम नाम का …...भजन करता है …..वृन्दावन आ अपने मन के सभी अरमान पूरे कर लें ….कृष्ण सेवक बनें ….. राधे के साथ कुशल क्षेम करें और सुने …..यहां आ तुम्हे भक्ति और कृष्ण प्रेम का तोहफा ….बेमोल ही मिलेगा …..बेमोल ही मिलेगा …..! रचना वृन्दावन की महिमा का गुणगान कर रही है ! सौभाग्यशाली हैं वे जो कृष्ण राधे के दीदार के लिये वहां जाते हैं ! ऐसी सुखदायी प्रस्तुति के लिए मेरे भैया योगेश जी का आभार , धन्यवाद ! राधे कृष्ण की लीलाओं का रोमांच मन मे भरने के लिए उन्हें साधुवाद एवं हार्दिक स्नेहिल मङ्गलाशीष !

जरा वृन्दावन जाकर देखो श्याम मुरली बजाते मिलेंगे
सङ्ग में होंगी राधेरानी , श्याम झूला झुलाते मिलेंगे

              जय श्री वृन्दावन धाम

रचना-51

एक बावरा पड़ा है तेरी शरण मे आकर
विनती है इसको रख ले अपने चरण का चाकर ! एक …
हे दीनबन्धु दाता करदो कृपा मुरारी
सब कुछ लुटा के आया , सेवा में ये तुम्हारी
दिल को सकूँ मिला है बदले में तुमको पाकर ! एक …..

(श्री योगेश वर्मा स्वप्न जी की पुस्तक कृष्ण माधुर्य-2 में से )

एक श्रद्धालु , समर्पित भक्त , श्री धाम वृन्दावन में , बिहारीं जी के सम्मुख खड़ा , प्रायश्चित करते हुए , विनती कर रहा है ! कई जन्मों से बिछुड़ा हुआ चाकर मोह माया की दलदल में फंस भटक् गया था , खोजते खोजते अब कहीं कृष्ण प्यारे का दीदार हुआ है ! उसके प्रायश्चित को रचनाकार मेरे भैया यूँ शब्दरूप दे रहे हैं …....बिहारी…..तेरा पुजारी तेरे द्वारे पर खड़ा …..तुमसे तेरे प्रेम की भीख मांग रहा है …..कई जन्मों पहले ….वो तुमसे बिछुड़ गया था …..मोह माया की दलदल में फंस…..भटकता भी रहा …...और अपने प्यारे को खोजता भी रहा …..सदियों के बाद आज ठिकाने पहुँच …..नतमस्तक है …. घट घट की जानने वाले ….अन्तर्यामी …..उसकी पुकार सुन ले ….उसे अपने श्री चरणों में शरणागति दे दे …..बेचारा कोई पूजा की विधि भी तो नहीं जानता …..बस हाथ जोड़े ….विनयभाव में स्वयं को समर्पित ….करने आ गया है …..कोई फूलों की थाली नहीं उसके पास …..अर्चना पूजा जानता नहीं …. नयनों में आँसुओं के फूल …..दर्शनों की इच्छा की ज्योति …..और मनोभावों की थाली सजा …..बाँके बिहारीं …..तेरे समक्ष है ….उसे स्वीकार ले …..उसे स्वीकार ले …..! रचना एक रसिक भक्त के मन की आंतरिक भावनाओं का थाल है जिन्हें स्वतः समेत वो बिहारीजी को भेंट चढ़ाने आ गया है ! अपने अहं को तज , समर्पित जन को ही तो कान्हा अपने हृदय से लगा लेते हैं ! ऐसी श्रद्धा और प्रेमपगी प्रस्तुति के लिए मेरे भैया योगेश जी का आभार , धन्यवाद ! सच्ची लगन , विरक्तभाव से ही कान्हा प्रेम अपेक्षित है का ज्ञान देने के लिए उन्हें साधुवाद एवं हार्दिक स्नेहिल मङ्गलाशीष !

देव तुम्हारे कई उपासक कई ढंग से आते हैं
सेवा में बहु मूल्य भेंट वे कई रँग की लाते हैं
धूमधाम और साजबाज से मन्दिर में वे आते हैं
मुक्तामणि बहु मूल्य भेंट वे लेकर तुम्हें चढ़ाते हैं

             जय श्री बिहारीं जी की
रचना-52

वृन्दावन आ गए कन्हैया को भा/पा गए
दुनिया पूछे बृज में आकर क्या करेंगे
भजन करेंगे भजन करेंगे भजन करेंगे
माया को छोड़ा ममता को छोड़ा
अहंकार दिया त्याग मौत से नहीं डरेंगे
भजन करेंगे ……

(श्री योगेश वर्मा स्वप्न जी की पुस्तक कृष्ण माधुर्य-2 में से )

22 मई 17 को रचनाकार मेरे भैया की पुस्तक कृष्ण माधुर्य का विमोचन है , उसी उपलक्ष्य में कृष्ण दीवाने श्री धाम वृन्दावन की ओर कूच कर गए हैं ! उन दीवानों के भाव को रचनाकार ने शब्द रूप यूँ दिया है …..कृष्णा …..मेरे दिलवर …..तेरे दीवाने तुझे मनाने …..धूम मचाने के लिए वृन्दावन पहुँच गए हैं …..बिहारीं ….तेरे मन्दिर का बंगला …..जंगला ….द्वार सजाने के लिए सब  वृन्दावन आये हैं ….अपने अपने गंतव्य से लाये ….फूलों से तेरी माला पिरो ….समर्पित करने आ गए हैं ….हमारे सप्रेम लाये हुए फूलों को स्वीकार कर …..मेरे मनमोहन ….और हमारे दुखो सुखों को बांट ले …..अपने श्री विग्रह से बाहर आ ….बृहद दर्शनों से अनुग्रहित करदे ….तुझसे अपना नाता जोड़ने ….मित्र या सम्बन्धी …..जो भी मुनासिब हो….वृन्दावन आये हैं …..युग युगान्तरों से इस मन की चाह है …..हम भी रास में शामिल हों …..गोपी के जैसी आडम्बर रहित …..तुझ से प्रीति है …..इसी उल्लास से मन फुदक फुदक….चौकड़ी भर रहा है ….नश्वर जग से मुँह मोड़ …..तुझे रिझाने वृन्दावन आये हैं …..स्वप्न में मैंने तुझे अपने अंतर्मन में ही पाया है …..मेरे मुरारी ….सारी उम्र तेरे विरह में तड़पते ….रातों को अनिद्रा ग्रस्त …..तेरी माला जपते रहे हैं ….अब अपनी हार को स्वीकारते ….तेरे नाम का सुमिरन करते …..आखिर दीवाने हो वृन्दावन आ गए हैं …..वृन्दावन आ गए हैं …..! रचना कृष्ण दीवानों की बिहारीं जी से प्रीति और उनका जोश दिखा रही है ! आखिर अपने बिहारीं जी को रिझाने जो आये हैं ! ऐसी समर्पितभाव की प्रस्तुति के लिए मेरे भैया योगेश जी का आभार , धन्यवाद ! पुस्तक विमोचन के लिए सभी दीवानों को बुला , अनुग्रहित करने के लिए उन्हें साधुवाद एवं हार्दिक स्नेहिल मङ्गलाशीष !

वृन्दावन जाने को जीअ चाहता है
वृन्दावन में रसिकबिहारी , नज़रें मिलाने को जीअ चाहता है
वृन्दावन जाने को जीअ …..

               जय श्री बाँके बिहारीं लाल जी

रचना-53

वृन्दावन की डगर पकड़ ले
यही रास्ता अगर पकड़ ले
तो तर जाएगा वापस नहीं आएगा , अरे …
वहां मिलेगा काला ग्वाला
जो है गैयन का रखवाला
बच नहीं पायेगा अरे  वापस नहीं आएगा , अरे …..

( श्री योगेश वर्मा स्वप्न जी की पुस्तक कृष्ण माधुर्य-2 में से )

वृन्दावन में पहली बार आये भक्त के भाव हैं आज की रचना ! भक्त जो वृन्दावन में आ बिहारीं जी के मंदिर को ढूँढते ढूँढते स्वयं ही भटक गया है लोगों से पूछते पुछाते राह मिल भी गई है पर भीड़ को देख हतप्रभ है ! उस भक्त के भावों को रचनाकार मेरे भैया शब्द रूप यूँ दे रहे हैं …….कान्हा….तेरे मन्दिर का पता लगाने के लिए …...भटके हुए तुझे ढूँढते ढूँढते आखिर तेरी गली में पहुँच ही गए …..राह में तेरा पता पूछते तेरे मन्दिर तक आ ही गए …..लेकिन अब इंतज़ार है …..तेरे द्वारे के खुलने का…..मन मे तेरे दर्शन की अभिलाषा जो लेकर आये हैं …..तेरी ही स्तुति के भजन गाते गाते …..तेरी गली में आ ही गए …..तेरे दर  पर भीड़ ही इतनी है …..की मन बेचैन हुए
जा रहा है ….. कुँजन की रज को मस्तक लगा …..और चूमते हुए …..तेरी गली आ ही गए …..तेरे दर्शन की प्यास में …..आँखों से आँसू बहे जा रहे हैं …..और यूँ ही ज़िन्दगी बीती जा रही है …..तेरे प्रेम की महक को सूँघते सूँघते कान्हा …..तेरी गली में आ ही गए …..तेरी गली में आ ही गए ……! रचना कृष्ण दर्शन अभिलाषी की अथक कोशिश है जिससे वो भटकता हुआ भी कृष्ण दीदार के लिए बिहारीं जी के मन्दिर पहुँच ही गया ! मन मे कुछ करने की अगन हो तो जीव क्या नहीं कर सकता ! ऐसी पावन भावना दिखाती प्रस्तुति के लिए मेरे भैया योगेश जी का आभार , धन्यवाद ! श्याम प्यारे के दर्शनों की ललक कब टिकने देती है , का ज्ञान देने के लिए उन्हें साधुवाद एवं हार्दिक स्नेहिल मङ्गलाशीष !

मेरे बाँके बिहारीं दा दरबार बड़ा सोहना
ओथे मोती मिलदे ने व्योपार बड़ा सोहना

रचना-54

बृज मण्डल देस दिखाओ रसिया बृज मण्डल
वृन्दावन में बन्दर बहुत हैं
सूना भवन देख घुसिया , बृज मण्डल ! बृज मण्डल ….
वृन्दावन वन में नार बहुत हैं
एक पुरुष सब नार रसिया , बृज मण्डल ! बृज मण्डल …..

                  ( एक रसिया )

वृन्दावन ऐसो धाम है , जहां पुरुष सिर्फ कृष्णा हैं , बाकी सभी गोपियाँ ! अपनी गोपियों सङ्ग कन्हाई विहार करते और रास रचाते हैं ! यही भाव सकल रसिकों का रहता है ! रचनाकार मेरे भैया उन्हीं गोपियों के भाव को यूँ विस्तार दे रहे हैं …..वृन्दावन जाने वाला हर रसिक …...वहां गोपी रूप में ही जाता है …..और तभी अपने प्रियतम प्यारे …..कन्हाई….का प्रेम प्राप्त करता है ….जिनके मन में श्री धाम जाने की लालसा हो …..उसे ही कान्हा अपनी मुरली की टेर से स्वयं …..बुला लेते हैं …..एक  बार ही आया भक्त …..कान्हा को दिल दे बैठता है …..जब कन्हाई की टेढ़ी चितवन उसे सम्मोहित कर लेती है …..जो भक्त श्री धाम की पावन रज को मस्तक लगा …...राधे नाम का सुमिरन करते हैं …...कन्हाई तो उनके चाकर बन जाते हैं …..वहां रहना  हर एक के वश का नहीं …..कई जन्मों के पुण्य फलने पर ही …..श्री धाम का वास मिलता है …..वृन्दावन में वास करने वाला मनुष्य  …..धन्य है जिसको नित्य प्रति …..कृष्ण की लीलाएं देखने को मिलती हैं …..ऐसा संयोग कई जन्मों के बाद आता है …...जब कोई जीव वृन्दावन पहुँच पाता है …..वृन्दावन पहुँच पाता है ….! रचना श्री धाम वृन्दावन की महिमा का बखान कर रही है ! श्री धाम की स्तुति बखानती प्रस्तुति के लिए मेरे भैया योगेश जी का आभार , धन्यवाद ! मन मे वृन्दावन जाने की ललक पैदा कर देने के लिए उन्हें साधुवाद एवं हार्दिक स्नेहाशीष !

नीको लगे वृन्दावन , हमें तो बड़ो नीको लगे
निर्मल नीर बहत यमुना को , भोजन दूध दधि को
रत्न सिंहासन आप विराजे मुकुट धरयो तुलसी को
मीरा के प्रभु गिरधर नागर भजन बिना नर फीको

        जय श्री राधे कृष्णा

रचना -55

प्यार तेरा चाहिए था मिल गया है
और क्या चाहूँ मेरे कृष्णा
दिल का कमल भी धीरे धीरे खिल गया है।
और क्या चाहूँ मेरे कृष्णा

( श्री योगेश वर्मा स्वप्न जी की पुस्तक कृष्ण माधुर्य-2 में से )

कृष्ण अनुरागी भक्त श्री धाम वृन्दावन में बिहारीं जी के श्री विग्रह के समक्ष नतमस्तक खड़ा , अपना आभार व्यक्त कर रहा है ! मन दर्शन कर मस्ती में झूम रहा है और तृप्ति भी हो गई है ! साथ में विनय भी कि उसकी साँवली सूरत सदा उसके नयनों में बसी रहे ! भक्त के भाव रचनाकार मेरे भैया यूँ बखानते हैं …..बिहारीं ….तेरे दर्शन कर तृप्त हो गया हूँ…..मस्ती छा रही है …..मेरा अहोभाग्य जो मैं वृन्दावन तेरे दर्शनार्थ आ गया हूँ …..इतनी विनय है …..तेरी साँवली सलोनी सूरत सदा नयनों में बसी रहे …..और तेरे दर्शनों के लिए मैं नित्य प्रति आना चाहता हूँ  …..तेरा सेवक बन सदा तुझे ही निहारता रहूँ …..कान्हा…..काफी समय से मन में …..वृन्दावन आने की …..तड़प थी ….वेदना थी ….और आज वृन्दावन की रज को मस्तक लगा …..मैं धन्य हो गया हूँ …..प्रियतम प्यारे …..तुम अंदाज़ा भी नहीं लगा सकते ….तेरे दर्शनों से इस रूह को कितना सकून मिला है ….ऐसा लगता मेरा भाग्य उदय हो गया है …..वैसे ही जैसे अंधेरी काली रात में …..चन्द्रमा प्रकट हो गया हो …..चन्द्रमा प्रकट हो गया हो ….! रचना कान्हा समर्पित भक्त का बिहारीं जी का दर्शन दीदार दे देने का शुकराना है , लगन है मन मे पुनः पुनः दर्शनों की ! ऐसी प्रेम पगी प्रस्तुति के लिए मेरे भैया योगेश जी का आभार , धन्यवाद ! मन में वृन्दावन की चाहत पैदा करने के लिए उन्हें साधुवाद एवं हार्दिक स्नेहिल मङ्गलाशीष !

वृन्दावन जाने को जीअ चाहता है
नज़रें मिलाने को जीअ चाहता है

            जय श्री वृन्दावन धाम

रचना-56

कृष्ण प्रेम के अनुरागी हम , कृष्ण प्रेम अपनी पूँजी
मनमोहन के हो बैठे हम मन में जब वँशी गूँजी
मन में जब वँशी गूँजी मन हुआ दीवाना
दीवाने को छोड़ दो प्यारे अब तड़पाना
जन्म जन्म के बाद यह अनुपम अवसर आया
गले लगा लो मोहन , अब मुझ को अपनाना
मन मे जब वँशी …..

( श्री योगेश वर्मा स्वप्न जी की पुस्तक कृष्ण माधुर्य-2 में से )

कृष्ण अनुरागी भक्त की लगन की दास्ताँ है आज की रचना ! कितने भी भक्तों का हवाला देते हुए भक्त स्वयं को समर्पित कर अपने लिए भी वैसी ही ख्वाहिश का इच्छुक है ! उस भक्त के भावों को रचनाकार मेरे भैया ने यूँ व्यक्त किया है …..राधेरानी ….मीरा ….सूरदास …..और सन्त कबीर …... तेरे नाम के दीवाने रहे हैं …...मेरे श्याम …..वैसी ही लगन हमें भी तुम से है….. तेरी लगन ही में कईयों ने अपना सर्वस्व न्यौछाबर कर दिया …..कितने ही अपने अहं को तज …..तेरे प्रेम में खो ….चरण सेवक हो गए …..ऐसी प्रीति ध्रुव …..प्रह्लाद …..शबरी …..और निषाद राज …..को भी हुई थी …..जो साक्षात तुम्हारे दर्शन पाना चाहते थे …..इसीलिये निरंतर तेरे ध्यान में खोये रहे …..उसी तरह हम भी ध्यान योग के द्वारा …..अन्तस में से तुम्हारा दीदार पाते हैं …..तेरी प्रीत की तो रीत ही निराली है ….अन्तर्मन में आत्मा और परमात्मा के सुमेल से…...तुम्हारे माधुर्य रस को पा…..अंतर्मन भावविभोर हो जाता है …..ये अनुभव वही कर पाते हैं …...जो निःस्वार्थ और निष्काम भाव से तुझे भजते हैं …..तुझे भजते हैं …..! रचना भक्त सन्तों , राजकुमारों और निम्न जाति जनों की भक्ति को दिखा रही है ! प्रभु के पास जातपात का बन्धन नहीं ! # जातपात पूछत नहीं कोय , हरि को भजे सो हरि का होय # को सार्थक कर रही है ! ऐसी प्रेमपूरित प्रस्तुति के लिए मेरे भैया योगेश जी का आभार , धन्यवाद ! पुरातन में सन्त हुए ,अब भी तो हो सकते हैं , का ज्ञान देने के लिए उन्हें साधुवाद एवं हार्दिक स्नेहिल मङ्गलाशीष !

लगन तुमसे लगा बैठे जो होगा देखा जायेगा
तुझे अपना बना बैठे जो होगा देखा जायेगा

                  जय श्री कृष्णा

रचना-57गोविन्द चले आओ गोपाल चले आओ !
हे मुरलीधर माधव नन्दलाल चले आओ !
सुनते हैं राधावर तुम भक्तों की सुनते हो !
तुम भक्तों के हो मोहन दुनिया को दिखा जाओ ! ,गोविन्द….
तेरे दर्शन को मोहन मेरे नयन तरसते हैं !
इक पल भी चैन नहीं दिन रात बरसते हैं !
अर्ज़ मेरी यह भगवन अब और न तड़पाओ !
गोविन्द …….

आज की रचना कृष्ण अनुरागियों के जीवन सर्वस्व , कन्हैया की स्तुति है ! वे योगेश्वर हैं और रचनाकार मेरे भैया ने बड़े क्रमबद्ध तरीके से उनकी एक एक खूबी का बखान कुछ यूँ किया है …..कान्हा नंदबाबा के लाडले और मैया यशोमति के प्यारे सपूत हैं…..गोपियों को तो उनके सिवाय कुछ सुहाता ही नहीं …..सुंदरता में उनका कोई सानी नहीं …..* वे मोहन हैं तभी तो मुस्कुरा कर लूट लेते हैं …...टेढ़ी टेढ़ी चितवन में फंसा कर लूट लेते हैं * ……वे सुदर्शनधारी हैं और दुष्टों का दमन कर भक्तों की रक्षा करते हैं ……. उन्हें अपनी शरण में ले भवसागर से पार कर देते हैं …..* दुनिया में नहीं जिसका कोई उसका खुदा है * को सार्थक करते हुए …..सदा अपने भक्तों की रक्षा करते हैं …..वंशी की मधुर तान से ,  रसिकजनों  पर जादू सा किये रहते हैं …..और वे भी आकर्षित हो कन्हाई से जुड़े रहते हैं …मोर मुकुट और पीताम्बर धारी कन्हैया गोपियों संग रास रचाते और …...सभी के मन में अपने नाम का प्रेमामृत घोल उन्हें हर्षित किये रहते हैं…...हर्षित किये रहते हैं ! रचना कन्हैया की तिरछी चितवन और बाँकी अदाओं को जीवंत कर रही है ! ऐसी मनोरम , मनभावन प्रस्तुति के लिए मेरे भैया योगेश जी का आभार , धन्यवाद ! कन्हैया की बाँकी अदाओं में खो हमें भी कृष्ण प्रेमामृत में डुबकी लगाने की प्रेरणा के लिए उन्हें साधुवाद और हार्दिक स्नेहिल मङ्गलाशीष !

लूटी लूटी बथेरी मौज लूटी , जदों दा तेरा लड़ फड्या !
अपने बगानियां ने फेर लईआं अक्खियां !
मैं तां उमीदां शाम तेरे उत्ते छड्डियां
मैं ते डोर तेरे ते सुट्टी  , जदों दा तेरा लड़ फड्या !
लूटी लूटी बथेरी …..

हे कृष्ण कन्हाई , हे मुरली मनोहर !

रचना58

प्रभु चरणों का ध्यान लगा मनवा अंतर्मुख हो जा रे
हरी का ध्यान लगा मन्वल अंतर्मुख हो जा रे
अंतर्मुख हो जा रे छोड़ के जग झंझट सारे ! प्रभु …
भृकुटि मध्य में ध्यान लगा कर गुरु मंत्र जप ले
और चेतना ऊपर ले जा निज कपाल रख ले
तज दे अपना नाम अहम को परम ब्रह्म में जाकर
परमतत्व कर लीन योग की निद्रा में सो जा रे !प्रभु…..

( श्री योगेश वर्मा स्वप्न जी की पुस्तक कृष्ण माधुर्य-2 में से )

ध्यानयोग के सम्बधित है आज की रचना ! सर्वशक्तिमान प्रभु हमारे अंदर ही आसीन है और उसे खोज रहे हैं हम बाहर ! ध्यान लगा उस प्यारे के अंतर में दर्शन किये जा सकते हैं ! इसी सम्बन्ध में रचनाकार मेरे भैया यूँ समझा रहे हैं …..नादान ! तेरा प्रभु तो तेरे ही भीतर है …..उसे बाहर कहाँ खोज रहा है ?.....अपने ध्यान को भृकुटि पर लगा…..और पूरा ध्यान यहीं एकाग्र कर….यहां तक कि अपने शरीर की भी सुधि न रहे …...माया के मोह से बाहर निकल …...गुरुमंत्र का जाप करता रह…...अपने ध्यान को ब्रह्मरन्ध्र में ले जा ….स्वयं को प्रभु का अंश मान …..उसी परमपिता से जोड़ ले ….उसके दीदार से आनन्दित हो ….उसी में निमग्न रह…..और अपने पाप कर्मों को …..बिसार दे …..अंदर से निकाल दे ….. अंतरयामी की कृपा से ….प्रभु दर्शन कर ले ….  आत्मा और परमात्मा का मिलन हो रहा है ….पानी की बूँद जैसे सागर में जा …..अपना अस्तित्व और अहं त्याग देती है …..उसी तरह आत्मा का परमात्मा में विलय हो गया है …..उसी प्यारे में समाहित हो गई है …..समाहित हो गई है …..! रचना समाधि द्वरा प्रभु प्राप्ति की विधा बता रही है ! क्यों ना अपने अन्तर्मन में झांक उस प्यारे का दर्शन किया करें ! ऐसी ज्ञानवर्धक प्रस्तुति के लिए मेरे भैया योगेश जी का आभार , धन्यवाद ! प्रभु कहीं बाहर नहीं , अंतर ही में हैं , का ढंग समझाने के लिए उन्हें साधुवाद एवं हार्दिक स्नेहिल मङ्गलाशीष !

बैठ अकेला दो घड़ी कभी तो ईश्वर ध्याया कर
मन मन्दिर में ग़ाफ़िला झाड़ू रोज़ लगाया कर

             जय पारब्रह्म परमेश्वर

रचना-59

शरण तिहारी आई कान्हा अपना ले
कर ले प्रेम सगाई कान्हा अपना ले
विछुड़ के तुमसे कान्हा मेरा दिल रोया
तुझ बिन जीवन लगता है खोया खोया
कभी नींद ना आई कान्हा अपना ले

( श्री योगेश वर्मा स्वप्न जी की पुस्तक कृष्ण माधुर्य -1 में से )

कन्हैया प्रेमवतारी हैं , अपने भक्तों से तो पूर्ण लगाव रखते ही हैं पर स्वतः को विष मिला दूध पिलाने वाली पूतना राक्षशी को भी माँ का दर्जा दे तार देते हैं ! रचनाकार मेरे भैया कृष्ण नाम की महिमा यूँ बखान करते हैं …..कन्हाई ….कैसे अजब निर्द्वन्दी हो तुम …..पूतना राक्षशी …..जो जहर मिला दूध पिला….तुझे मारने आई …..तूने तो उसे भी निजधाम पहुंचा दिया …..यही नहीं उसे माँ का दर्जा दे सम्मानित भी किया…..कान्हा ….प्रेम के लिए तो तुम जाने जाते हो …..पर गुस्सा तो तुम्हारा और भी बढ़िया ….तारणारा …..उस दूध में तुम्हे जहर नहीं …..,माँ का वात्सल्य ही दिखा …..जो उसने अपना शिशु जान तुम पर उढेला …...दूध के साथ ही उसके प्राण भी पी लिए,.....और पहुँचा दी निजधाम …..कैसे भी लो ….कन्हाई का सुमिरन करो …..प्रेम से …..दुःखी हो …..या गुस्सा करते हुए ही उसका नाम लो ….कृष्ण द्वारा अपनी मौत से डरता हुआ ….कंस…..तुम्हें भुला ना पाया ….वो भी स्वर्गगामी हुआ …..चाहे मित्र सुदामा की तरह …..मित्र समझ याद करो …..सीधा उलटा ….किसी तरह भी हुआ ….वो तुम्हारी आवाज़ नहीं भाव देखता है …..डाकू रत्नाकर को …….राम को मरा मरा जपने पर भी तार दिया …..शिशुपाल से वचन किया था तुमने  कन्हाई …..सौ गालियों तक तुझे कुछ न कहूँगा …..उसके बाद तेरा संहार …..शिशुपाल भी डर से कन्हैया को भुला नहीं पाया …..उसको भी संसार सागर से उबार दिया …..इसी तरह रावण को परमगति मिली …..दुश्मन हो …..मित्र …..या भक्त …..जो भी तेरा सुमिरन …..जैसे भी भाव से करे ….तुम निस्तार देते हो …..निस्तार देते हो ….! रचना कन्हाई की दयालुता पर केंद्रित है ! उसे कैसे भी भजो , वो प्यारा अपना लेता है और बाँह पकड़ भवसागर पार कर देता है ! ऐसी प्रेमपुजारी की प्रस्तुति के लिए मेरे भैया योगेश जी का आभार , धन्यवाद ! सुमिरन सर्वोपरि है क् ज्ञान देने के लिए उन्हें साधुवाद एवं हार्दिक स्नेहिल मङ्गलाशीष !

आप क्या जानो ऐ श्यामसुन्दर कैसे तुम बिन जीये जा रहे हैं
तेरे मिलने की उम्मीद लेकर गम के आँसू पीये जा रहे हैं

                  भक्तवत्सल मेरो गोविन्द

रचना-60

श्याम के चरणों मे मेरा ध्यान हो
फिर तो चाहे बुद्धि हो न ज्ञान हो
इन चरण कमलों का नित्य दर्शन करूँ
अश्रुओं के पुष्प नित्य अर्पण करूँ
अश्रु मेरे प्रेम की पहचान हों
श्याम के चरणों में मेरा ध्यान हो
        ( श्री योगेश वर्मा स्वप्न जी )

सर्वव्यापक प्रभु अन्तर्यामी भी हैं , घटघटवासी भी ! उसी की लौ आत्मा के रूप में इस अचेतन शरीर को चेतना दिये हुए है ! वस्त्रों की तरह तन बदलती यह आत्मा जब शरीर छोड़ जाती है तो वह निश्चेष्ट , अचेतन , जड़ ही तो हो जाता है ! इसलिए मन मन्दिर में आसीन प्रभु की बलैयां लो , उसे दिल-ओ - जान से प्यार करो....उसी को अपना असली खैरख्वाह , हमदर्द और रहनुमा मानों , अपना जीवन सर्वस्व ! रचनाकार मेरे भैया , प्रभु को रिझाने के लिए कुछ टिप्स हमें दे रहे हैं.....प्रभु.....मेरा सांवरा....कोई व्यक्ति विशेष नहीं .....मन के भाव हैं.....दिल के बेहद करीब.....बहुत ही निजी और प्यारा.....उससे ऐसा प्रेम .....कि उस बिन रहा नहीं जाए......विरह से छलकती आँखे.... हरपल उसी को ढूँढती .....और मिलन को तड़पती रहें .....दूर तो वह है नहीं ....अन्तस में ही आसीन है.....तुम्हारा दिलवर .....दिलदार .....और हमराज़ बना हुआ....उसी के प्रेम में मन पगला जाए....छटपटाता रहे मिलने के लिए.....प्रेम का ऐसा प्रबल प्रवाह बहे.....अन्तस में जैसा कभी.....मीरा , सूरदास और तुलसीदास में बहा था .....# मेरे तो गिरधर गोपाल दूसरों न कोई रे # का ऐलान कर मीरा जोगन हो गई.....बिरवा मङ्गल कृष्ण प्रेम में......अपनी आँखें फोड़ सूरदास बन.....बाल कृष्ण पद लिखने लगे.....तुलसीदास पत्नी रत्नाबली की फटकार से......रामभक्त बन ......उनकी स्तुति में ......रामचरित मानस की रचना कर दी.....उन्हीं की तरह .....हमारी प्रीत भी दिन-ब-दिन बढ़ती जाए.....किसी भी समय सुमिरन से......ध्यान बदले नहीं.....दुनिया की कोई भौतिक लिप्सा..... बाधा न बन पाए.....हर समय दिल कृष्ण दीदार के लिए......तड़पता और तरसता रहे.....सिर्फ वही शाश्वत .....नित्य और सनातन है.....उसके लिए दुनिया के मिथ्या.....अनित्य ......नश्वर सम्बन्धों से किनारा करलो.....जैसा भाव बन जायेगा.....उसी तरह से मेरा कान्हा.....दर्श दे देगा....जिस हद तक प्यार करोगे.....उतनी ही मिठास....उतना ही आनंद आने लगेगा.....अब सोच ले क्या नाता रखना है उससे......पिता....भाई.....बेटा..... मीत .....या पिया......का रिश्ता बना.....उसे शिद्दत से निभाएं .....वो प्यारा उसी सम्बन्ध को निभाते.....सदा साथ रहेगा.....साथ रहेगा......! रचना संसार को मिथ्या और प्रभु को सर्वोपरि और शाश्वत मान रही है ! उसी के सुमिरन में समर्पण से ध्यानमग्न हो , उसकी प्राप्ति सम्भव है ! ऐसी प्रेमपूरित और नसीहत देती प्रस्तुति के लिए मेरे भैया योगेश जी का आभार , धन्यवाद ! प्रभु चरणारविन्द में जीवन यापन की नेक राय के लिए उन्हें साधुवाद एवं हार्दिक स्नेहिल मङ्गलाशीष !

कान्हा से दिल क्यों लगाया है ,
यह मैं जानूँ या वो जाने
छलिया से दिल क्यों लगाया है
यह मैं जानूँ या वो जाने
          राधे गोविन्द , हरे कृष्णा

रचना-61

कई जन्मों से बुला रहे हो कोई तो रिश्ता ज़रूर होगा
नज़रों से नज़रें मिला ना पाई मेरी नज़र का कसूर होगा
तुम्हीं तो मेरे मात-पिता हो तुम्हीं तो मेरे बन्धु सखा हो
इतने नाते तुम सङ्ग जोड़े कोई तो नाता ज़रूर होगा
कई जन्मों से …..

अपना घर , अपना ही घर है जिसका कोई सानी नहीं ! जीव इस नश्वर संसार में आता है प्रभु सुमिरन के लिए , लेकिन माया ठगनी उसे ऐसा अपने पाश में बांध लेती है , जीव इसी की सुख सुविधाओं में उलझा प्रभु को भुला बैठता है ! मन के किसी कोने में प्यारे दिलवर की कसक भी कचोटती है तब भटके हुए जीव को अपने असली घर की याद आती है ! रचनाकार मेरे भैया ने उसी अपने घर की प्रशंसा यूँ की है …..जग बहुत सुंदर है …..जीव को भरमाने के लिए …..बहुत सुंदर गाँव और शहर हैं …..पर अपने घर के सानी नहीं …...परदेस में रहने के लिए ….कितनी ही सुविधाएं हों …..फिर भी # जो सुख छज्जू दे चौबारे , ओह बलख ना बुखारे # ….अपने घर जैसा सुख कहीं भी नहीं ….इस नश्वर जग की हर चीज़ ….अनित्य ….नश्वर है ….यहां तक यह देह भी …..भले ही दुःखी मन से ही यह सब छूटे ….छूटेगी ज़रूर ….ठहरेगी नहीं ….देह का पिंजरा तोड़ …..हँस अकेला ही …..नित्य…..शाश्वत….के पास चला जायेगा …..ना सम्पत्ति साथ जायेगी …..ना ही कोई माल खजाना साथ जाएगा …..हां ….भक्ति में ये विघ्न बाधाएं ज़रूर डालती हैं ….कितनी भी कठिन परिस्थितियाँ हो …..लेकिन अपने घर जाने के लिए ……..भजन की पूँजी ज़रूर संग्रह  करते रहनी होगी …..बस यही साथ जाएगी …..,यही साथ जाएगी …..! रचना आत्मा के परमात्मा में विलय होने से पहले सतर्क कर रही है कि इसके लिए भजन बन्दगी अति आवश्यक है ! तभी तो अपने घर की प्राप्ति होगी ! ऐसी ज्ञानदायक प्रस्तुति के लिए मेरे भैया योगेश जी का आभार , धन्यवाद ! समय रहते सुचेत करने के लिए उन्हें साधुवाद एवं हार्दिक स्नेहिल मङ्गलाशीष !

जीवन की घड़ियां तू बिरथा ना खो ॐ जपो , हरि ॐ जपो
चादर ना लम्बी तान के सो ॐ जपो हरि ॐ जपो

           जगत नियन्ता पारब्रह्म परमात्मा

रचना-61

सजन रे झूठ मत बोलो खुदा के पास जाना है
ना हाथी है ना घोड़ा है वहां पैदल ही जाना है ! सजन रे….
ये तेरे महल चौबारे यहीं रह जायेंगे सारे
अकड़ किस बात की प्यारे , अकड़ किस बात की प्यारे
यह सर इक दिन झुकाना है ! सजन रे झूठ ……

यह संसार माया का पसारा है और प्रभु ने हमें इसी में उलझाया हुआ है ! संसार को सच मानते हुए ,यहीं दिल लगा लिया , धन ,सम्पत्ति और जीवन की अन्य सुविधाएं जुटाने में लग गए , उस हरि को भूल , भोग विलास , स्वयं को प्रेम के बन्धनों में बांध लिया ! ये सब दुःख के कारक हैं ! इन सब से चौकन्ना करते हुए रचनाकार हमें अपने असली घर की याद दिला रहे हैं …..मेरे प्रभु …..तेरी बनाई दुनिया असीम है …...फिर भी अपने घर से मुकाबला कहाँ ? …...तेरे धाम , तेरे चरणारविन्द के आश्रय से बेहतर नही …….अच्छा माया का आडम्बर रच तूने  उसमें उलझाया हुआ है …..पर तेरे धाम के आगे निरर्थक है यह …...इस सराय …..रैन बसेरे को अपना मान …….सुख सुविधाओं से लैस किये हुए …..ऐश्वर्य का जीवन चाहे जी लें …...फिर भी असली ठिकाने …….अपने परमपिता के पास हमे जाना ही है …..यहां कमाया है यहीं रह जायेगा …...प्रेम भी स्वार्थ है यहां …...इक दूजे का दिल तोड़ देना दस्तूर है यहां का…...काश यह कमाई यह प्रेम ठहर पाते …..यहां की कमाई , धन दौलत , सम्पत्ति ….कुछ भी साथ न जाएगा…..सब यहीं धरे के धरे रह जाएंगे…….छोड़ कर जाएगा तो सिर्फ तू …...हां ! इन सभी सुख ऐश्वर्य ने तेरी भक्ति में अड़चन ज़रूर डाली है…...सुमिरन में खलल डाला है …..वो कमाई जिसे तेरे साथ जाना है …..प्रभु के पास …...उसके घर खाली तो न जाओगे…...इसलिए भजन बन्दगी में मन लगाओ…..कितनी भी रुकावटें , मुसीबतें आयें …...सुमिरन चलता रहे …..उस के लिए कम से कम …...सुबह और शाम बन्दगी का नियम बनालें …...सुबह शाम बन्दगी ज़रूर करें ……!  रचना संसार की दलदल में न उलझ उस परमेश्वर को याद रखने की विधा बता रही है , ताकि अपना अगन्त सुधर जाए ! दुनिया के लिए कमाते रहे , प्रभु के लिए भी नामधन संग्रहित करें ,जिससे जीवन सार्थक हो जाये ! ऐसी ज्ञानवर्धक प्रस्तुति के लिए रचनाकार का आभार , धन्यवाद ! जग से अनासक्त और प्रभु भक्ति में अनुरक्त रहने की प्रेरणा के लिए उन्हें साधुवाद एवं हार्दिक स्नेहिल मङ्गलाशीष !

दुनिया ते आके जान तों डरदा ऐ आदमी
वेखो जी की खुनामियाँ करदै ऐ आदमी
खुदगर्जियाँ दा पुतला आखे मैं ही मैं रहां
मन्दिर , मस्जिद माड़ियाँ कब्जे च कर लवां
पानी ते जिवें बुलबुला तरदा ऐ आदमी ! वेखो जी …..

                 सच्चिदानंद , सृष्टिनियन्ता परमेश्वर

रचना-62

इक तेरा सहारा है कृष्णा
किसी और की अब दरकार नहीं
ये जग के सब रिश्ते झूठे
मुझे और किसी से प्यार नहीं ! इक तेरा ….
मैं जीत रहूँ या मर जाऊँ
या तुझ में प्रभुसम जाऊँ
बस एक तुझे देखूँ सन्मुख
मेरा और कोई संसार नहीं ! इक तेरा ….

( श्री योगेश वर्मा स्वप्न जी की पुस्तक कृष्ण माधुर्य-2 में से )

समर्पित भक्त की जब से कन्हाई से प्रीति हुई है उसे सिवाय कन्हाई कुछ भाता नहीं , दुनिया से पूर्णतया विरक्त ! हर समय साँवली सलोनी सूरत आँखों मे बसी रहे , उसके इलावा कुछ देखना गवारा नहीं ! ऐसे भक्त के भावों को रचनाकार मेरे भैया ने यूँ बखान किया है …..मनमोहना ….जब से मेरी प्रीति तुम सङ्ग हुई है ….जीवन ही हर्षोत्साहित हो गया है ….जहाँ भी मैं रहूँ  …..तुम मेरे साथ होते हो …..तुम्हारा सानिध्य होता है मेरे साथ …..फिर तेरी वँशी की धुन भी तो …..कानों में गूँजती रहती है …….कहीं भी रहूँ वृन्दावन का ही आभास होता है …..संसार से विरक्त …..तेरी रास की चितवन …..मोहे मधुवन में तुम सङ्ग रास की सी लगने लगती है …...कभी कभी पस्त सा होने लगता हूँ …..तुझे पाने की तमन्ना में साहस खोने लगता है …..तेरी याद में यह मन ….हर पल तड़पता है …..हर पल तड़पता है ……! रचना कृष्ण  प्रेमी भक्त को उसी के रंग में पूर्णतया रंगा हुआ दिखा रही है ! भक्त का मन ही वृन्दावन , मधुवन बन गया है , हर समय उसी के सानिध्यता में ! ऐसी माधुर्य प्रस्तुति के लिए मेरे भैया योगेश जी का आभार , धन्यवाद ! कृष्ण प्रेम की झांकी दिखा देने के लिए उन्हें साधुवाद एवं हार्दिक स्नेहिल मङ्गलाशीष !

आँखों मे बसे हो तुम , धड़कन मे धड़कते हो
कुछ ऐसा करो मोहन साँसों में समा जाओ
गोविन्द चले आओ गोपाल चले आओ

             जय श्री कृष्णा

रचना-63

मैं क्यों सोचूँ मेरे बारे मेरा ठाकुर सोचेगा
मुझे चाहिये क्या मेरा क्या मेरा ठाकुर सोचेगा
सौंप चुका हूँ उसके हाथों में कब से अपनी पतवार
सपनों की ताबीर मेरी क्या , जाना है कैसे उस पार
मैं कयों सोचूँ मेरे बारे…..

         ( श्री योगेश वर्मा स्वप्न जी )

कान्हा के प्रेम पुजारी भक्त के उद्गार हैं आज की रचना ! ऐसा बावरा हो गया है भक्त , जिसे अपने तन मन की भी सुध नहीं , सिवाय अपने प्रियतम प्यारे के ! उसी के ख्यालों में खोए , चाहत है कि साँवरा भी उसे आश्रय दे , शरणागति दे ! इसी भाव को , रचनाकार मेरे भैया ने यूँ कलमबद्ध किया है …...,कन्हाई …..तुझसे इतना प्यार हो गया है …..समझ नहीं पाता क्या करूँ ….कहां जाऊँ ….जहां भी देखता हूँ …...तू ही तू नज़र आता है…...मैं तो तन मन धन और जीवन …..अपना सर्वस्व …..तुझे समर्पित कर चुका हूँ…….अब तो तो यही इच्छा है …..मैं तुझ में …...या तू मुझ में …...समाहित हो जाएं …..मेरा कोई  अस्तित्व ही न रहे …...तू  ही बता मेरे गोविन्द …..मिलने की जब इतनी तीव्र आकांक्षा हो ….तो क्या मजबूरी है ?…..तुम मिलते क्यों नही हो …...मुझे स्वीकारते क्यों नहीं हो ? …..आओ मेरे प्यारे …..मुझे गले से लगा ले …...तेरे गले लग आनंदित होना चाहता हूँ …...तेरे प्रेम में बावरा हूँ …..लगता है सभी तेरे नामलेवा भी …..मेरी तरह पगला गए हैं …..क्यों न तेरे नाम लेवाओं की…..एक बस्ती बसा लें ? …...तू मुझे दरश देगा ऐसा मुझे विश्वास है….यह भी जानता हूँ…...अपने भक्तों को तुम निराश नहीं करते हो…...चलो आओ दर्श दो …...मेरे सङ्ग भी नेह दिखा …...भक्त वत्सल होने का प्रमाण  दे दो  …...भक्त वत्सल होने का प्रमाण दे दो……! रचना भक्त के मनोभावों को प्रकट करती हुई कृष्ण का दीदार और उसका आश्रय चाहती है ! दुनिया से विरक्त हो # तू मेरा मैं तेरा # का भाव , बाकी सब व्यर्थ ! ऐसी प्रेमपगी प्रस्तुति के लिए मेरे भैया योगेश जी का आभार , धन्यवाद ! कान्हा प्राप्ति के लिए  प्रेम अगन का होना बहुत ज़रूरी का ज्ञान देने के लिए उन्हें साधुवाद एवं हार्दिक स्नेहिल मङ्गलाशीष !

हृदय से मेरे भगवन  एक ॐ नाम निकले
चलते व फिरते सोते एक ॐ नाम निकले
नाड़ों व नसों से आँखों की पुतलियों से
हर अंग अंग में से इक ॐ नाम निकले
हृदय से मेरे …….
           मेरो गोविन्द , मेरो गोपाल

रचना-64

तेरी तलाश श्यामा वे मैं कराँ कित्थे कित्थे !
कोई पता न तेरा वे दस्स जावां कित्थे कित्थे !

कन्हैया की तलाश में हैं हम दीवाने , लेकिन नहीं जानते कहाँ मिलेंगे हमें ! बृज भूमि में कौन सी जगह है जहाँ कन्हाई को नहीं ढूंढा , बृज चौरासी के नाम पर हर लीला स्थली में खोजा लेकिन निष्फल ! रचनाकार मेरे भैया ने इसी संदर्भ में रचना के माध्यम से कन्हैया से ही पूछ लिया जिसकी जानकारी कुछ यूँ है …
कन्हाई ….तेरी तलाश , तेरे सभी वैष्णव कर रहे हैं…..कहीं भी तो तुम मिल नहीं रहे …..तुझे देखने को आँखे तरस रही हैं…..जहाँ तुम हो वहीं हमे बुलालो प्यारे…..जहाँ बृज की गलियों में राधे जु अपनी सखियों संग विचरती रहीं हैं…..जहाँ कान्हा  गैयन   चारन करते रहे हैं…..जहाँ पनघट पर गोपियों ने पानी भरा और वो कदम्ब का पेड़ …... जिस पर कन्हाई तुम बैठ वंशी बजाते रहे हो …..वो बतादो न हमें भी…...मधुवन के उन पेड़ों का झुरमुट…..जहाँ रास रचाई…..यमुना जी का वो पुलिन …..जहाँ निर्मल जल प्रवाहित है….मधुर प्रेम बांटते बांटते…..जहाँ गोपियों के चीर हरण करते रहे हो….वो स्थली हमें भी दिखाओ न …..ऐसे स्थान  जहाँ भक्त वृन्द संकीर्तन में संलग्न हैं…..वो ही स्थान जहाँ समाधिस्थ हो अपने कन्हाई को अपने अंदर से ही पा लिया करते हैं….. वो जगह जहाँ मंदिर में खड़े हो…..श्री विग्रह को निहार * प्यारे कृष्ण * कह निहाल हो जाते हैं …..प्यारे कृष्ण कह निहाल हो जाते हैं….. हमे वो जगह तो बता दो प्यारे…..बतादो न …...रचना कृष्ण को ढूंढने की भटकन है ! बृज भूमि में अमुक स्थानों की तलाश है जिसे पाने की उत्सुकता है ! ऐसी प्रेम सनी प्रस्तुति के लिए मेरे भैया योगेश जी का आभार , धन्यवाद ! कन्हाई के जीवन में दिलचस्पी ले अपने जीवन को सार्थक करने के लिए उनको साधुवाद और हार्दिक मङ्गल कामनाएं और स्नेहिल शुभाशीष !

ऐ मेरे श्याम जी तुझे ढूंढू कहाँ ,
न तो मिलके गये न दिया कुछ निशाँ !
ऐ मेरे शाम जी….
        राधे गोविन्द ! राधे कृष्णा !