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इतने करीब

इतने करीब आके भी इतने हो दूर क्यूँ
माना हसीं हो हुस्न पर इतना गुरूर क्यूँ


इतना सता के मुझको , क्या मिल जाएगा तुम्हें
सोचो कभी के मैं हूँ इतना गम से चूर क्यूँ

पीता नहीं हूँ फिर भी क्यूँ इतना नशे में हूँ
आंखों का तेरी मुझपे है छाया सुरूर क्यूँ

मेरी खता बताओ क्यूँ मुझसे हो तुम खफा
मैं ही कुसूरवार क्यूँ तुम बेक़सूर क्यूँ?



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ख़ुद-बी-ख़ुद आते हैं वो दिल की पुकार पर
हाथ से थामे हुए दिल--बेकरार को
ख़ुद-बखुद गाते हैं वो उल्फत के साज़ पर
आँख से झरते हुए , नगमा--प्यार को
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आह भर-भर के

आह भर-भर के तुझे याद किया करता हूँ
तुझसे मिलने की सदा फरियाद किया करता हूँ

तोड़ना दिल को किसी के नहीं अच्छा होता
जाम भर-भर के सदा अश्क पिया करता हूँ

मेरी दुनिया में चले आओ हकीकत बनकर
अपने ख़्वाबों में तुझे आवाज़ दिया करता हूँ

कैसे पायेगी मेरी रूह मेरे बाद सुकून
तुझको पाने की तमन्ना लिए गर मर जाऊं




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तेरे ख़याल को दिल से भुला नहीं सकता
सदायें देके भी तुझको बुला नहीं सकता
वफ़ा की राह में मजबूर इस कदर हूँ मैं
यकीं वफ़ा का भी अपनी दिला नहीं सकता