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तुम्हारी खातिर

गीत गाता हूँ, मेरे दोस्त तुम्हारी खातिर
मुस्कुराता हूँ मेरे दोस्त तुम्हारी खातिर
जब भी देखोगे कहीं ,
मुझको पाओगे वहीँ,
मैं ही आकाश के हर तारे में,
झिलमिलाता हूँ मेरे दोस्त तुम्हारी खातिर
मुझको क्यूँ खोज रहा
तेरे सन्मुख मैं खड़ा
मैं ही तो बाग़ के इन फूलों में
खिलखिलाता हूँ मेरे दोस्त तुम्हारी खातिर
छिपके धड़कन में तेरी
मैं ही रहता हूँ सदा
प्रेम से तेरे नए गीतों को
गुनगुनाता हूँ मेरे दोस्त तुम्हारी खातिर
सुन ले वंशी की सदा
कृष्ण कह या के खुदा
मैं ही गीतों के रूप में तेरे
पास आता हूँ मेरे दोस्त तुम्हारी खातिर
*******************
एक गीत तुम्हारे आने का, एक गीत तुम्हारे जाने का
एक गीत तुम्हारे रोने का , एक गीत तुम्हारे गाने का
एक गीत लिखा है खुशियों का एक गम का गीत लिखा मैंने
एक गीत लिखा है मधुबन का , एक गीत लिखा वीराने का

6 टिप्पणियाँ:

श्यामल सुमन ने कहा…

इस रचना में आपने कई रंग एक साथ दिखाये मेरे दोस्त। SUNDER.

अर्चना तिवारी ने कहा…

सुन्दर रचना......

Unknown ने कहा…

Bahut Barhia... IBlog ki dunia me aapka swagat hai...si Tarah Likhte rahiye.

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आदित्य आफ़ताब "इश्क़" aditya aaftab 'ishq' ने कहा…

मैं भी आपका दोस्त ,उत्तम रचना ......

Sulabh Jaiswal "सुलभ" ने कहा…

"तुम्हारी खातिर"------गीत अच्छे लगे.

- सुलभ
( यादों का इंद्रजाल )

गोविंद गोयल, श्रीगंगानगर ने कहा…

shandar,jandar,damdar.narayan narayan

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