ओ स्वप्न लोक की परी
तुम्हारी छवि
मेरे ह्रदय दर्पण में
ओ भावी हृदयेश्वरी
छिपाए हुए
तुम्हारा कवि
तुम्हें निज अंतर्मन में
अनजान पौध की कली
लगो तुम भली
बिना देखे जीवन में
खोज रहा ओ कली
तुम्हारा अली
तुम्हें हर वन मधुवन में
मिल जाओ ओ मौन
देख मैं कौन
इच्छुक तेरे दर्शन का
निकल के आ ओ चित्र
प्रकट बन मित्र
तोड़ दे आज
चौखटा इस दर्पण का
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चले आओ चले आओ तुम्हें दिल ने पुकारा है
बहुत रंगीन मौसम है, बड़ा दिलकश नज़ारा है
चलाओ कहीं भी हो मेरी आवाज़ को सुनकर
चले आओ कहीं भी हो कोई भी रास्ता चुनकर
चले आओ मेरा यह गीत ही मेरा इशारा है
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