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निवेदन

निवेदन

ओ अंतर्वासिनी 
यदि मैं अपनी
ह्रदय वेदना का भार
तुम्हें सौंप दूँ 
तो क्या तुम मेरा सन्देश 
"उस" तक पहुंचा दोगी
मेरी आस्था कि पंखुरियां 
मुरझा कर ना बिखर जाएँ 
इससे पहले
मेरा अश्रु निर्झर
मेरे विश्वासों कि श्रंखला को 
तोड़ कर बह निकले 
इससे पहले
हे अंतर्वसिनी
तुम्हें उस तक पहुंचना होगा 
सुनो! यदि मेरी ह्रदय-वेदना
बहुत भारी है
तो "वह" तुम्हें निकट ही मिल जायेगा 
और तुम्हारा भार स्वयं वहां कर लेगा 
इसके विपरीत यदि वह हलकी है
तो तुम्हें "उसकी" खोज में भटकना पड़ेगा
किन्तु "वह" मिलेगा अवश्य.

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1 टिप्पणियाँ:

निर्मला कपिला ने कहा…

बहुत गहरे सुन्दर भाव। बधाई

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