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मुक्त

मुक्त

मुक्त मुक्त मुक्त , 
उन्मुक्त सुप्त गुप्त, 
अहो! मुक्त हो  गया मानव
जीवन के बंधन से
मुक्त हो गया मानव
सुख दुःख के क्रंदन से 
मुक्त हो गया मानव
सृष्टि कण में विचरण को 
मुक्त हो गया मानव 
इश्वर दर्शन को 
यह सुप्त अवस्था
अक्षय शांति देने वाली
वह स्वप्न जो मानव देख रहा था 
लुप्त हो गया 
यह गुप्त बात है
नहीं किसी ने
अब तक जानी 
क्या देख रहा है "स्वप्न"
तुम्हें बतलाये कैसे
जो मानव सो गया.


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