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काश

काश अगर तुम साथ हमारे होते
जीवन का सफ़र कुछ और हसीं हो जाता
ना सावन में हम आहें भरते होते
ना रह रह कर दिल हाथ से निकला जाता

ना नज़र हमारी तुम्हें खोजती फिरती
ना दीवाना दिल हमें कहीं भटकाता
ना दर्द भरा कोई गीत फूटता दिल से
ना गीत मेरा कोई गाकर मुझे रुलाता

ना रातों में यूँ नींद हमारी उडती
ना जाम पिला कर हमको कोई सुलाता
ना सपनों में यूँ बार बार तुम आते
ना स्वप्न टूट जाने पर मैं पछताता

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क्षण दो क्षण भर साथ निभाकर कहाँ खो गए ओ सहगामी
क्षण दो क्षण भर प्रीत निभा कर कहाँ खो गए ओ सहगामी

2 टिप्पणियाँ:

अजय कुमार ने कहा…

किसी को याद करती सुंदर रचना , बधाई

ज्योति सिंह ने कहा…

क्षण दो क्षण भर साथ निभाकर कहाँ खो गए ओ सहगामी

क्षण दो क्षण भर प्रीत निभा कर कहाँ खो गए ओ सहगामी
behad sundar rachna

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