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निर्लिप्त

मौत से लगता नहीं अब दर मुझे
जिंदगी से प्यार भी मुझको नहीं
दोस्तों से है नहीं वफ़ा की उम्मीद
दुश्मनों से दुश्मनी करता नहीं

अब ना कोई आज मेरे पास है
दूर भी मुझसे नहीं कोई कहीं
अब कभी मुझको हंसी आती नहीं
एक समय से आँख भी रोई नहीं

जागता हूँ होश में या सो गया
बेहोश हूँ या स्वप्न में खोया कहीं
जी रहा हूँ मैं या शव बन कर पड़ा
गा रहा हूँ गीत रूह बनकर कहीं

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आसमान चलता हुआ आया कहाँ से
बाजुओं में आ मेरे गुम हो गया
खोजने जब लग पड़ा मैं आसमान को
देखा मैं ही आसमान खुद हो गया

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