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स्वप्न हूँ मैं

स्वप्न हूँ मैं आँखों में तेरी
नींद नहीं आने दूंगा
बहुत दिनों के बाद मिले तुम
तुम्हें ना अब जाने दूंगा

खो जाऊँगा तुमको लेकर मैं
एक अजाने स्वप्नलोक में,
जिस दिशा से तुम आये हो अब,
उस और नहीं जाने दूंगा
स्वप्न हूँ मैं.............

इन्द्रधनुषी रंगों से रंग दूंगा
तेरा संसार सलोना
तोड़ के सब बंधन संग मेरे
आओ तारों के पार चलो ना
ले जाऊँगा उस पार तुम्हें
इस पार नहीं आने दूंगा.
स्वप्न हूँ मैं.............
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ये संसार स्वप्नमय सारा ,
इस दुनिया में कौन हमारा
माया के ये बंधन सारे
कौन किसी के साथ चला रे
किसने किसको यहाँ पुकारा

4 टिप्पणियाँ:

ज्योति सिंह ने कहा…

ये संसार स्वप्नमय सारा ,

इस दुनिया में कौन हमारा

माया के ये बंधन सारे

कौन किसी के साथ चला रे

किसने किसको यहाँ पुकारा
sach hi hai ,swapn sajte hai to jeene ki umeed bandhati hai ,ati sundar ,mano mere hi aane ka intjaar raha .chal akela chal .....geet yaad aa gaya padhte huye .

Neeraj Kumar ने कहा…

प्यारी सी नन्ही कविता जिसमे यथार्थ भी है और दर्शन भी.....

Neeraj Kumar ने कहा…

प्यारी सी नन्ही कविता जिसमे यथार्थ भी है और दर्शन भी.....

***Punam*** ने कहा…

"Tumhare liye" vakai main apni hi lagi...khud se milati julti....dhanyavaad

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