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काफिला घटता गया ज्यों ज्यों सफ़र लम्बा हुआ

काफिला घटता गया
ज्यों ज्यों सफ़र लम्बा हुआ
हम अकेले रह गए
मंजिल पर पहुँच जाने के बाद

एक राही हमसफ़र बन
साथ भी कुछ पल चला
चलते चलते खो गया वाह
राह दिखलाने के बाद

होश खो बैठे थे हम
होश मैं रहते हुए
आज हम हैं होश में
बेहोश हो जाने के बाद

हम तरसते रह गए थे
जिंदगी को जिंदगी में
जिंदगी हमको मिली है
आज मर जाने के बाद

तोड़ दी थीं हमने लड़ियाँ
मोतियों की जोश में
आज मोती खोजते हैं
हम बिखर जाने के बाद

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काल पुष्प मत मिलो धूल में
पवन सुगन्धित बहने दो
आये नहीं अभी शिशिर के क्षण
बसंत ही रहने दो

6 टिप्पणियाँ:

Creative Manch ने कहा…

हम तरसते रह गए थे
जिंदगी को जिंदगी में
जिंदगी हमको मिली है
आज मर जाने के बाद


बहुत खूब
काबिलेतारीफ पंक्तियाँ
बधाई
मकर संक्रांति कि शुभकामनाएं


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'श्रेष्ठ सृजन प्रतियोगिता'
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क्रियेटिव मंच

vandana gupta ने कहा…

bahut hi khoobsoorat aur uttam rachna.....man ko bhigo gayi.

संजय भास्‍कर ने कहा…

बहुत बढ़िया प्रस्तुती एक एक शब्द एक एक पंक्ति मुखर हो उठी है आपकी कलम का साथ पा कर

अजय कुमार ने कहा…

तोड़ दी थीं हमने लड़ियाँ

मोतियों की जोश में

आज मोती खोजते हैं

हम बिखर जाने के बाद

जोरदार लाइनें , अच्छा अंदाज कुछ समझाता सा

निर्मला कपिला ने कहा…

तोड़ दी थीं हमने लड़ियाँ
मोतियों की जोश में
आज मोती खोजते हैं
हम बिखर जाने के बाद

बहुत सुन्दर रचना है शुभकामनायें

girish pankaj ने कहा…

sundar rachana k liye badhai. aap ka lekhan leek se hat kar hai.

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