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कुछ रोज़

कुछ रोज़ पिया से जुदा रही
और रहकर के अब जान गई हूँ
दर्द विरह का क्या होता है
नींद आँख से उड़ती है क्यूँ
बेचैनी शब् भर रहती है
करवट बदल-बदल कर व्याकुल
रात को प्रेमी क्यूँ रोता है
क्यूँ आती है याद किसी की
क्यूँ भाति है अदा किसी की
प्रेम की खातिर पागल प्रेमी
अपना सब कुछ क्यूँ खोता है
अपने पी के पास चलूंगी
अपने पी के के साथ चलूंगी
कोई रोके कोई टोके
होने दो अब जो होता है
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जब चांदनी धरती पे उतरी थी क्षितिज के छोर से
चाँद चुपके चुपके निकला बादलों की कोर से
एकांत में सहसा तुम्हारी याद मुझको गई
शीतल हवा भूला हुआ वह गीत फिर दोहरा गई

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