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मुझे पुकारो

छलका दे आँखों से आंसू
भावी,गीत सुना जब कोई
मुझको जानो वह बंजारा
खोज रहा जो तुम्हें स्वप्न में

हर जन्म में हम तुम मिलते रहे
इस जन्म में तुमसे मिल ना सका मैं
तुम्हें खोजता भटक रहा हूँ
मृग मरीचिका में स्वप्नों कि

कहाँ छिपी हो कौन देश में
कौन रूप में कौन वेश में
अब तो बदली से बाहर आओ
शशि मुख अपना दिखलाने को

मेरे प्राण बसे हैं तुममें
देह यहाँ पर तड़प रही है
ओ, अनदेखी, ओ,मन देखी
आज कहीं से मुझे पुकारो

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सबने मुस्काते हुए देखा मुझे
एकांत में रोता ना कोई देख पाया
दर्द का मेरे कहाँ, किसको पता
घाव कैसा है कहाँ किसने लगाया

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