तब अब
अभी बैठे थे
सभी रिश्तेदार
मित्रगण
कितने विचित्र थे वे क्षण
आकाश पर महल बना
सितारों पर
कर रहे थे भ्रमण
दीर्घायु पाने के लिए
सबके जाने पर मैं
अकेला रह गया हूँ
एकांत देख
विचारों में बह गया हूँ
देख रहा हूँ
एक गहरी खाई
जिसकी गहराई में,
मैं बढ़ा जा रहा हूँ
अनंत में विलीन होने के लिए
अपने विचारों के साथ
उनके पीछे
जो जा चुके हैं
इस अनंत के किसी अंत तक
मुझे बुलाने के लिए.
*************
1 टिप्पणियाँ:
सुंदर रचना है ,बधाई
एक टिप्पणी भेजें
WELCOME