तार दिया जो ज़हर पिलाने आई उसको भी तुमने
तार दिया जो ज़हर पिलाने आई उसको भी तुमने
माँ का दर्जा दिया उसे जो मारन धाई जी तुमने
धन्य कन्हैया प्यार तुम्हारा गुस्सा उससे भी प्यारा
अरे खोज ली उस बिष में से मखन मलाई भी तुमने
करो प्यार से या गुस्से से मन मोहन का ध्यान करो
कंस बनो या बनो सुदामा लब पर उसका नाम धरो
उल्टा भज लो सीधा भज लो मतलब तो है भजने से
डाकू रत्नाकर कि नैया पार लगाई थीं तुमने
गाली देता रहा सदा जो शिशुपाल को तार दिया
धन्य तुम्हारी दया प्रभु जी रावण का उद्धार किया
ध्यान तुम्हारा करता है जो दुश्मन हो या मीत कोई
गति परम पा जाता कैसी प्रीत निभाई जी तुमने
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(योगेश स्वप्न 02;10;2015 )
मेरा लूट लिया दिल चोर मुरलिया वाले ने
मेरा लूट लिया दिल चोर मुरलिया वाले ने
काली कमरिया वाले कन्हैया काले ने
नयन मिला कर घायल कर गया
अद्भुत प्रेम ह्रदय में भर गया
रह गई ठगी सी खड़ी
आँख यूँ लड़ी
कर दिया यूँ प्रेम विभोर
बिरज के ग्वाले ने
मोर मुकुट हाथों में वँशी
मटकी फोड़ गया यदुवंशी
सगरी दधि गिर पड़ी
लगी जब छड़ी
मेरा नाच उठा मन मोर
छुआ मतवाले ने
कैसा था सौंदर्य अनूपम
जो भी उपमा दूँ लगती कम
ऐसी मस्ती चढ़ी
याद हर घडी
बावरिया मोहे कीन्ह
नन्द के लाले ने
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"Yogesh verma swapn 24,09,2015
तेरे गुणों का अंश भर भी गा सकूं ,हे प्रभु इतनी विनय सुन लीजिये
तेरे गुणों का अंश भर भी गा सकूं ,हे प्रभु इतनी विनय सुन लीजिये
है निवेदन बस यही तुमसे मेरा, लेखनी में भक्ति-रस भर दीजिये
तेरे गुणों का अंश भर भी गा सकूं....................
नाम से तेरे , मेरे रोमान्च हो, अश्रु की धारा प्रवाहित हो चले
खींच लाने की "तुम्हें" सामर्थ्य हो,चाहता हूँ शब्द ऐसे दीजिये
तेरे गुणों का अंश भर भी गा सकूं....................
हों तुम्हारे प्रेम की रचना सकल,और गाऊं मैं तुम्हारे प्रेम में
प्रेम ही बस प्रेम हो दिल में मेरे,नाथ मेरे प्रेम-रस में भीजिये
तेरे गुणों का अंश भर भी गा सकूं....................
मोम-सा बन कर पिघल जाए ह्रदय,भाव विव्हल हो पुकारूं मैं तुम्हें
और तुम बन जाओ "मेरे" कामना, प्राण तक बेशक मेरे ले लीजिये
तेरे गुणों का अंश भर भी गा सकूं....................
एक हो जाएँ प्रभु"मैं" और "तुम","स्वप्न" का सपना अधूरा ना रहे
"नाम" की ख्वाहिश रहे ना "काम" की, ख्वाहिशों से दूर मुझको कीजिये
तेरे गुणों का अंश भर भी गा सकूं....................
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कान्हा, मुझे वंशी बजाना सिखा दो
कान्हा, मुझे वंशी बजाना सिखा दो
कान्हा, मुझे वंशी बजाना सिखा दो
सात सुरों में गाना सिखा दो
कान्हा, मुझे वंशी बजाना सिखा दो
वंशी की धुन से मन को लुभाऊ
मैं भी तुम्हारे दिल को चुराऊ
वंशी सुना तड़पाना सिखा दो
कान्हा, मुझे वंशी बजाना सिखा दो
कान्हा, मुझे वंशी बजाना सिखा दो
नाम ले के वंशी मे तुमको पुकारूं
कान्हा कान्हा कान्हा कान्हा कान्हा उचारुं
वंशी में तुमको बुलाना सिखा दो
कान्हा मुझे वंशी बजाना सिखा दो
कान्हा मुझे वंशी बजाना सिखा दो
रुक ना पाओ सुन वंशी धुन
दौड़ दौड़ कर आ जाओ सुन
वंशी से जादू जगाना सिखा दो
कान्हा मुझे वंशी बजाना सिखा दो
कान्हा मुझे वंशी बजाना सिखा दो
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("योगेश वर्मा स्वप्न 20:12:2015).
अहंकार ना भक्ति का भी करना प्यारे
अहंकार ना भक्ति का भी करना प्यारे
तुमसे बढ़कर भक्त जगत में न्यारे न्यारे
दान अगर दो एक हाथ से ऐसे देना
हाथ दूसरे को भी कुछ भी पता चले ना
दान कभी देकर ना उसका गाना गा रे,अहंकार ना.......
अगर किसी की करो मदद तो करके भूलो
कभी किसी से जिक्र करो ना मन में फ़ूलॊ
मदद किसी की करके ना अहसान जता रे,अहंकार ना.......
अगर नाम लेना है प्रभु का मन में लेना
पास कोई बैठा हो उसको पता चले ना
नाम लिये जा भक्ति का ना शोर मचा रे,अहंकार ना.......
सच्ची सेवा करो सभी की प्रभु को अर्पण
प्रभु का काज किया तो कर दो उसे समर्पण
हर सेवा का केवल हरि को रहे पता रे,अहंकार ना.......
अहंकार ना भक्ति का भी करियो प्राणी
अहंकार है प्रभु का भोजन ओ अज्ञानी
अहंकार है भक्त जनों की बड़ी ख़ता रे,अहंकार ना......
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( योगेश वर्मा स्वप्न 27:12:2015)
कान्हा की वंशी पुकारे
चली मैं तो यमुना किनारे
कान्हा की वंशी पुकारे
चली मैं तो यमुना किनारे
तज कर गॄह-काज सारे
चली मैं तो यमुना किनारे, कान्हा की.....
सपना सत्य हुआ जन्मों का
आखिर अन्त हुआ कर्मों का
जागै हैं भाग हमारे
चली मैं तो यमुना किनारे,कान्हा की.....
बहूत पीये हैं घूंट ज़हर के
बहूत जिये दुनिया से डर के
पीने को प्रेम सुधा रे
चली मैं तो यमुना किनारे,कान्हा की.....
मधुर प्रीत है वंशीधर की
सुध बुध बिसराती मन हरती
आती है मीठी सदा(आवाज़ ) रे
चली मैं तो यमुना किनारे, कान्हा की....
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( योगेश वर्मा स्वप्न 25:12:2015)
नन्द के दुलारे यशोदा के प्यारे
नन्द के दुलारे यशोदा के प्यारे
गोपियों की आँखों के तारे कन्हैया
हमारे कन्हैया हमारे कन्हैया हमारे........
बाँकी है चितवन मोह रही मन
जादू -से करते इशारे कन्हैया
हमारे कन्हैया हमारे कन्हैया हमारे.,....
रक्षा हमारी करें चक्रधारी
पल भर में दुष्टों को मारे कन्हैया
हमारे कन्हैया हमारे कन्हैया हमारे...,
अपनी दया से अपनी कृपा से
भक्तों को अपने हैं तारे कन्हैया
हमारे कन्हैया हमारे कन्हैया हमारे...,
जिसका कोई नहीँ है जग में
उसके हैं अपने सहारे कन्हैया
हमारे कन्हैया हमारे कन्हैया हमारे..,.
मुरली बजाकर तान सुनाकर
गोपी जनों को पुकारे कन्हैया
हमारे कन्हैया हमारे कन्हैया हमारे....
मोर मुकुट पीताम्बर धारी
रास रचाते कृष्ण मुरारी
बांटें प्रेम सुधा रे कन्हैया
हमारे कन्हैया हमारे कन्हैया हमारे...,
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तेरी प्रीत की वँशी ने दिल मेरा चुराया आजा रे आजा रे
तेरी प्रीत की वँशी ने दिल मेरा चुराया आजा रे आजा रे
कहाँ छुपा निर्मोही तोसे नेहा लगाया आजा रे आजारे
नज़र चुरा कर निकल गया तू सबकी नज़रों से बचकर
अपनी बातों से भरमाया तूने सबको हंस हंस कर
दूर ह्रदय से करना था तो काहे अपने ह्रदय लगाया। आजा रे
तेरी प्रीत में पागल होकर तुझे ढूंढते रहे सदा
दीवाना कर गई हमें बाँके तेरी हर एक अदा
नींद चुराकर चैन चुराया सारी सारी रैन जगाया आजा रे
हम तो तुझको अपना समझे तू निकला चितचोर मगर
राह तेरी तकते तकते हुई रैन से भोर मगर
अपना था तोअपना रहता अपना होकर हुआ पराया आजा रे
तूने कितने वचन दिये और तोड़ दिए निष्ठुर कान्हा
हम तो तुझपर हुए निछावर अपना रब तुझको माना
छोड़ आये हम जग को हमने वचन निभाया आजा रे आजा रे
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(योगेश वर्मा स्वप्न 22.09.2015)