प्रतीक्षा:भावी की
भावी, अवश्यम्भावी
अद्रश्य अमूर्त का दर्शन
सिर्फ स्वप्न में ही नहीं
आत्मीय जनों का युगों बाद मिलन
आश्रम का परिवर्तन
और शिशु जन्म
नाम ना जान सका
किन्तु कर लिया
मधुलिका का चुम्बन
सत्य होता हुआ
वह धुंधला स्वप्न, शांत सागर की एक समय से
स्वयं ही में उफनती उर लहरों का
पूर्णिमा के चाँद को देखकर
उसको पाने को दौड़ना
प्यासी सीप में
मुक्ता बन्ने वाली बूँद का आना,
अज्ञात बादल से .
अज्ञात उद्गम स्थल से ,
निकली इठलाती मचलती नदी का
सागर में विलीन हो जाना.
एक चित्रकार का
बन्ने वाले चित्र की
भाव भंगिमा में विचारों में
पूर्ण तल्लीन हो जाना
चौराहे पर खड़े यात्री का
उस राह को छोड़ कर
जिससे वह आया है
उस राह को खोजना
जिसपर उसे जाना है
और सहयात्री की तलाश
प्रतीक्षा है भावी की.
***********
2 टिप्पणियाँ:
शानदार पोस्ट
प्रतीक्षा है भावी की.
और यही प्रतीक्षा तो जीवन की सार्थकता है
सुन्दर रचना
एक टिप्पणी भेजें
WELCOME