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फिर ना कहना हम अकेले रह गए तेरे बिना

फिर ना कहना हम अकेले रह गए तेरे बिना

फिर ना कहना हम अकेले रह गए तेरे बिना
अश्क के दरिया बने और बह गए तेरे बिना

साथ देते आए हो अब तक तो आगे भी चलो
दो कदम मंजिल थी पीछे रह गए तेरे बिना

मैं सदा देता हूँ तुमको फिर ना ऐसा हो कभी
स्वप्न सब खंडहर हुए और ढह गए तेरे बिना

तेरे बिन क्या क्या हुआ , क्या ना हुआ होकर जुदा
वादे थे जन्मों के, वादे  रह गए तेरे बिना

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फिर वही मुस्कान तेरे लब पे हो
और फिर वो ही कशिश दिल में तेरे
है यही एक आरज़ू मेरे सनम
है यही दिलबर दुआ दिल में मेरे


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ये तेरी नाराजगी भी एक अदा है
इस अदा पर मेरा दिल कबसे फ़िदा है
कब तलक सहता रहूँ दर्द-ए-जुदाई
मैं तेरे सजदे में, तू मेरा खुदा है.

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2 टिप्पणियाँ:

निर्मला कपिला ने कहा…

ये तेरी नाराजगी भी एक अदा है
इस अदा पर मेरा दिल कबसे फ़िदा है
कब तलक सहता रहूँ दर्द-ए-जुदाई
मैं तेरे सजदे में, तू मेरा खुदा है.
स्वपन जी सभी रचनायें एक से बढ कर एक। बधाई

Mumukshh Ki Rachanain ने कहा…

कब तलक सहता रहूँ दर्द-ए-जुदाई
मैं तेरे सजदे में, तू मेरा खुदा है.

सुन्दर
बधाई.
पर हाँ आपके ब्लाग में नयी पोस्ट खोजने में और उसे पूरी तरह पढ़ने में तथा उस पर कमेन्ट करने में दिक्कत आ रही है. कृपया फॉर्मेट में कुछ सुधार करें.

चन्द्र मोहन गुप्त

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