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सब्र हमसे

सब्र हमसे करा लिया था तब
सब्र अब आपको करना पड़ेगा
ऐसी जल्दी भी क्या मुहोब्बत में
पास एक इम्तहान करना पड़ेगा

पहले कर लूँ यकीं कि है या नहीं
आपको प्यार इस दीवाने से
जैसे जलता रहा है वो अब तक
इश्क कि आग में जलना पड़ेगा

है मज़ा इश्क में तभी सुनिए
आग दोनों तरफ बराबर हो
जलके हो जाए ख़ाक परवाना
शम्मा को आग में गलना पड़ेगा

कैसे पूजा करूँगा मैं उसकी
जो अभी सिर्फ एक पत्थर है
होगी तकलीफ भी मगर उसको
मेरी मूरत में ही ढालना पड़ेगा

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पर्वतों से गीत ले, ले वादियों से रागिनी
निर्झर जब गाता चलता है
कल कल छल छल कि मधुर ध्वनि से
पत्थर ह्रदय पिघलता है

7 टिप्पणियाँ:

अजय कुमार ने कहा…

एक सवाल या कोई जवाब ?
अच्छी गज़ल

Dileepraaj Nagpal ने कहा…

Sabr Kaise Kiya Jaaye...

निर्मला कपिला ने कहा…

कैसे पूजा करूँगा मैं उसकी
जो अभी सिर्फ एक पत्थर है
होगी तकलीफ भी मगर उसको
मेरी मूरत में ही ढालना पड़ेगा

बहुत भावनात्मक अभिव्यक्ति है । शुभकामनायें

हरकीरत ' हीर' ने कहा…

है मज़ा इश्क में तभी सुनिए
आग दोनों तरफ बराबर हो
जलके हो जाए ख़ाक परवाना
शम्मा को आग में गलना पड़ेगा

वाह....इस बार तो गज़ब किया है ......दिल के आर पार होते शब्द .....बहुत खूब .....!!

ज्योति सिंह ने कहा…

है मज़ा इश्क में तभी सुनिए
आग दोनों तरफ बराबर हो
जलके हो जाए ख़ाक परवाना
शम्मा को आग में गलना पड़ेगा
bahut khoob ,kamaal ka likha hai

girish pankaj ने कहा…

sundar bhavanaye..

Pushpendra Singh "Pushp" ने कहा…

बहुत सुन्दर रचना
बहुत -२ बधाई

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