थका -थका हूँ सफ़र में कहीं आराम मिले
अभी पता है, ना जाने कहाँ मुकाम मिले
एक कोमा ज़रूरी है जब तक
लिखने वाले को एक कलाम मिले
यूँ तो मिलने को मिल चुके लाखों
ठगने वाले मगर तमाम मिले
जिनसे उम्मीद थी नहीं दिल को
वो ही हाथों में हाथ थाम मिले
हमने मांगी थी उनसे आब-ए-हयात
अपने हिस्से में सिर्फ जाम मिले
ये ही हसरत लिए सफ़र को चले
आज शायद सुबह से शाम मिले
गलत पता ना था उनका "स्वप्न" तलाश करी
ना वो वहां थे , ना उनके निशान-ओ-नाम मिले
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मैं इसी जगह पर तुम्हें खोजने आऊंगा
मैं इसी जगह पर गीत विरह के गाऊंगा
मैं इसी जगह पर रो लूँगा तन्हाई में
मैं इसी जगह पर तड़प तड़प मर जाऊँगा
2 टिप्पणियाँ:
जिनसे उम्मीद थी नहीं दिल को
वो ही हाथों में हाथ थाम मिले
बहुत सुंदर और लयबद्ध रचना
laajwab yogesh ji
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