सबके नसीब का देगा वही खुदा
दाना गरीब का देगा वही खुदा
तू ऐतबार रख उसके जमाल पर
सबकी बलाएँ खुद लेगा वही खुदा
माना की वक़्त है गर्दिश में अब तेरा
लेकिन क्या रात का होगा ना सवेरा
ज़ुल्मों को सहन कर तू रब के नाम पर
ज़ालिम को खुद सजा देगा वही खुदा
एक तू ही तो नहीं दुनिया में बदनसीब
लाखों हैं और भी तेरे से भी गरीब
उसके करीब जा दामन पसार कर
दाता है सबका वो देगा वही खुदा
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मेरा जीवन मौत की किश्तें चुकाए जा रहा है
एक ख़ुशी के वास्ते सौ गम उठाये जा रहा है
जानता हूँ टूट कर टुकड़े हुए रिश्ते सभी
फिर भी न जाने क्यूँ उन्हें कैसे निभाये जा रहा है
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एक तू ही तो नहीं दुनिया में बदनसीब
लाखों हैं और भी तेरे से भी गरीब
उसके करीब जा दामन पसार कर
दाता है सबका वो देगा वही खुद
भगवान पर आस्था जताती रचना बहुत सुन्दर आभार्
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